

Paddy Seed

Paddy seeds are the mature grains of the rice plant (Oryza sativa), an annual grass widely cultivated in southern and eastern Asia. Paddy, also known as rice paddy, refers to the seeds along with their husk before milling. These seeds are sown in flooded fields called paddies, which are irrigated to maintain standing water essential for the crop's growth. Paddy seeds are typically sown either directly or transplanted as seedlings from nurseries, depending on local conditions and practices. The seeds have a protective husk, and inside lies the rice kernel, which is the edible part after processing. Quality paddy seeds are characterized by high purity, vigor, germination rate, and freedom from diseases, which are crucial for a good yield

PADDY SEED
VARIETY
PB-1885 | PB-1509 | PB-1692 PB-1718 | PB-1985 | PB-1847
PB-1121
धान की अधिक पैदावार के लिये
उन्नत कृषि तकनीकों, उच्च गुणवत्ता वाले बीज, संतुलित उर्वरक, उचित सिंचाई और कीट नियंत्रण का पालन करना आवश्यक है। इससे किसानों को बेहतर उत्पादन और अधिक लाभ प्राप्त होता है।

किस्मों का चयन
किस्मों के चयन बाजार आधारित मांग, उपभोक्ता की पसंद, इसे पकाने की गुणवत्ता, निर्यातक / मिल मालिकों द्वारा की गई सराहना और पादप बचाव की न्यूनतम समस्याओं पर आधारित गुणों को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए।

बीज तथा उसका उपचार.
यदि प्रमाणित बीजों को उपयोग में लाया जाता है तब उत्पादन में 5-7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी संभव है। चयनीत बीजों को 10 कि.ग्रा. बीज मात्रा पर 5 ग्राम पारायुक्त रसायन तथा 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से उपचारित किया जाए। तत्पश्चात् बीज को 24 घण्टे के लिए 10 लीटर पानी में रखा जाए। इससे बीजजनित बिमारियों से बचाव किया जा सकेगा।

पौध रोपण का समय एवं तरीका
बासमती चावल की कुल पैदावार और क्वालिटी में पौध रोपण में समय की महत्वपूर्ण भूमिका है। बासमती किस्मों की रोपाई-जुताई के पहले पखवाड़े एवं दूसरे पखवाड़े में क्षेत्र विशेष को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। रोपाई में देरी करने से पुष्पगुच्छ प्रति वर्गमीटर और दाने प्रति पुष्पगुच्छ में भी कमी आती है। अतः उत्पादन में कमी आती है। 20 से 25 दिन पुराने नर्सरी का उपयोग करने से कई अधिक पैदावार प्राप्त होती है।

अधिक उत्पादन लेने के लिये आवश्यकता बातें
1. बीज बोने से पहले अंकुरण क्षमता की जांच करें।
2. सही समय एवं उपयुक्त नमी होने पर बुवाई करें।
3. सही किस्मों का प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
4. बीजोपचार करें।
5. मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करें।
6. समय पर सिंचाई का ध्यान रखें।
7. समय पर पौधा संरक्षण करें।
8. खरपतवारों का समय से नियंत्रण करें।
धान में बिमारियों के समाधान के लिए विशेषज्ञों से
सलाह लें ।
पोषक तत्व (उर्वरक) प्रबंधन
बासमती किस्मों के लिए 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश, 26 कि.पा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर में उपयोग किया जाए। बासमती-1 और सुगंधा-4 किस्मों के लिए 30 कि.ग्रा, नाइट्रोजन का अतिरिक्त उपयोग किया जाए नाइट्रोजन का उपयोग पौध रोपण के 7, 20 तथा 40 दिनों में बराबर हिस्सों के ऊपरी सतह पर किया जाए।
खरपतवार नियंत्रण प्रबंधन
पौधे को खेत में रोपने के 2.3 दिन बाद जैसे कि म्यूटाक्लोर-15 कि.ग्रा., एनिलाफॉस 0.4 ग्राम और ट्रेटिलाक्लोर 0.75 ग्राम से 1 कि.ग्रा.का उपयोग किया जाए।
कीट नियंत्रण एवं उपचार
कीड़े एवं बिमारियों के लिये आवश्यतानुसार रसायनिक दवाओं का प्रयोग करें। टिल्ट /रिजल्ट आदि दवा (200 मि.ली.) का प्रयोग 200 ली. पानी में मिलाकर प्रति एकड़, फूल आने की 10 प्रतिशत एवं 50 प्रतिशत अवस्था पर अवश्य छिड़काव करें। पत्तियों पर बादामी रंग के धध्ये (ब्लास्ट) आने पर एडीफेनफास 35 ई.सी. 1 मि.ली./ली. पानी की दर से स्प्रे करें । शीथ प्लाइट से बचाव हेतु शीथमार/वैवस्टीन अथवा टिल्ट आदि दवा का छिड़काव करें । तना छेदक से बचाय के लिए कार्योफ्यूरॉन अथवा फोरेट नामक दानेदार दया का 5-6 कि.ग्रा./एकड़ प्रयोग करें। खरपतवारों से बचाव हेतु मशेटी
(1 ली./एकड़) अथवा रिफिट/इरेज (500 मि.ली./एकड़) दवा का प्रयोग करें तथा आवश्यतानुसार हाथ से भी खरपतवार निकाल दें।

नोट : किसी किस्म की पैदावार वहां की जलवायुए मिट्टी वह किसान की मेहनत पर निर्भर करती है किसी भी फसल की कम या ज्यादा पैदावार के लिए कंपनी की कोई भी जिम्मेदारी नहीं होगी
